अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
शांतिपूर्ण उपयोग की नाभिकीय गतिविधियों के नियमन के क्षेत्र में जानकारी के आदान प्रदान के लिये एईआरबी विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के साथ सक्रिय सहयोग करता है। एईआरबी के विशेषज्ञ अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की विभिन्न गतिविधियों में योगदान देते है। इसके कुछ उदाहरण हैं :-
एमडीईपी, राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरणों, जो नयी रिएक्टर डिज़ाइनों की समीक्षा कर रहे हैं / करेंगे, के संसाधनों तथा जानकारी को समृद्ध करने के लिये अभिनव तरीकों के विकास के लिये एक बहुराष्ट्रीय प्रयास है। 4 अप्रैल, 2012 को, 2006 में इस कार्यक्रम के प्रारंभ के बाद भारत का एईआरबी पहला नया सदस्य बना। भारत के सदस्य बनने से पहले कनाडा, चीन, फिनलैंड, फ्रांस, जापान, कोरिया गणराज्य, रूसी संघ, दक्षिण अफ्रीका, यूनाइटेड किंगडम तथा अमरीका के राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरण इसके सदस्य थे।
नाभिकीय ऊर्जा एजेंसी (NEA), एमडीईपी के लिये तकनीकी सचिवालय का कार्य करती है। कार्यक्रम का नियंत्रण एक पालिसी ग्रुप (PG) द्वारा होता है जिसमें प्राधिकरणों के अध्यक्ष शामिल हैं। कार्यक्रम का संचालन तकनीकी समिति (STC) तथा कार्यकारी दलों (WG) द्वारा लागू किया जाता है।
एमडीईपी का कार्य ‘डिज़ाइन विशेष’ तथा ‘मुद्दे विशेष’ कार्यकारी दलों द्वारा संपन्न किया जाता है। वर्तमान में दो ‘डिज़ाइन विशेष’ कार्यकारी दल (EPR-WG व AP1000-WG) बनाये गये हैं जो इन रिएक्टरों की डिज़ाइन के आकलन तथा उनके निर्माण के बारे में जानकारी के आदान प्रदान द्वारा सहयोग करेंगे। साथ ही तकनीकी व नियामक क्षेत्रों के लिये ‘मुद्दे विशेष’ (जातिगत मुद्दे) कार्यकारी दल भी बनाये गये है। इन दलों में विक्रेता निरीक्षण सहयोग (VIC-WG), संहितायें व मानक (CS-WG) तथा अंकीय यंत्रीकरण वि नियंत्रण (DIC-WG) दल शामिल हैं।
एईआरबी विभिन्न कार्यकारी दलों में कई क्षेत्रों में अनुभव के आदान प्रदान के लिये सक्रिय रूप से भाग लेता है। परमाणु ऊर्जा विभाग के प्रत्याशित कार्यक्रम, जिसमें ईपीआर सहित विभिन्न प्रौद्योगिकियों के नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र स्थापित करना शामिल है, की दृष्टि से भारत का इस कार्यक्रम में इन रिएक्टर डिज़ाइनों की संरक्षा समीक्षा व लायसेंसीकरण गतिविधियों में भाग लेना अत्यंत लाभप्रद है। अंतर्राष्ट्रीय मंच पर नियामकों का परस्पर सहयोग, नये रिएक्टरों की नियामक डिज़ाइन समीक्षा की प्रभावकारिता एवं दक्षता बढ़ाने का कार्य करता है तथा नियामक निर्णयों को अधिक दक्ष व संरक्षा केंद्रित बनाता है।
ओईसीडी-एनईएनाभिकीय ऊर्जा एजेंसी (NEA), आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) के अंतर्गत एक विशेषज्ञ एजेंसी (औद्योगिक राष्ट्रों की सरकारों का संगठन) जो फ्रांस के पेरिस शहर में स्थित है। यह एक अद्वितीय मंच है जिसमें 35 सदस्य राष्ट्र बेहतर जीवन की बेहतर नीतियां बनाने के लिये मिल कर काम करते हैं।
इस एजेंसी का उद्देश्य नाभिकीय ऊर्जा के शांतिमय उद्देश्य के लिये सुरक्षित, पर्यावरण-अनुकूल तथा मितव्ययी उपयोग के लिये, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के द्वारा वैज्ञानिक, तकनीकी व कानूनी आधार बनाने तथा उसके विकास के लिये सदस्य राष्ट्रों की सहायता करना है। यह एजेंसी नाभिकीय ऊर्जा नीति पर सरकारी निर्णयों के लिये प्रमुख मुद्दों पर तथा ऊर्जा एवं संपोषणीय विकास जैसे क्षेत्रों में ओईसीडी की नीति के विश्लेषण के लिये अधिकारिक आकलन प्रदान करती है।
हाइड्रोजन न्यूनीकरण परियोजना हाइमेरेस (HYMERES)इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य, संरक्षा आकलन की सहायता के लिये संरोधक में हाइड्रोजन जोखि़म की जानकारी तथा उसके माडलन में वृद्धि करना है, यह संरक्षा आकलन वर्तमान एवं नये संयंत्रों के लिये किया जाता है। हाइड्रोजन जोखि़म से संबंधित पिछली परियोजनाओं की तुलना में हाइमेरेस परियोजना के तीन नये पहलू शामिल हैं :
- पहला, वास्तविक प्रवाह स्थितियों पर विचार किया जायेगा। इससे एक वास्तविक नाभिकीय संयंत्र के विश्लेषण के लिये आधारभूत गणनात्मक व माडलन आवश्यकताओं के आकलन के लिये महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होगी।
- दूसरा, संरक्षा घटकों की परस्पर क्रिया के लिये परीक्षण किये जायेंगे। पिछले अध्ययन में एक संरक्षा घटक (छिड़काव, शीतलक, निश्चेष्ट स्वत: उत्प्रेरक पुनर्संयोजक आदि) के प्रारंभन पर केंद्रित थे तथा इससे उनके लाभ व कमियों के बारे में जानकारी प्राप्त हुई थी। नयी परियोजना में “संरक्षा घटको” के विभिन्न संयोजनों के अध्ययन की योजना जैसे दो निष्चेष्ट स्वत: उत्प्रेरक पुनर्संयोजकों द्वारा उत्पन्न तापीय प्रभाव, छिड़काव एवं शीतलक, छिड़काव एवं खुलनेवाले हैच आदि का एक साथ प्रचालन। परियोजना के भागीदारों के सहमति के आधार पर संरक्षा घटकों की डिज़ाइन (जैसे छिड़काव के लिये पूर्ण शंकु या खोखला शंकु, निश्चेष्ट स्वत: उत्प्रेरक पुनर्संयोजक अनुकारी के विद्युत स्रोतका काल इतिहास, शीतलक की डिज़ाइन आदि) का निर्णय लिया जायेगा।
- तीसरा, कुछ चुनी हुई स्थितियों के लिये तंत्र के व्यवहार का परीक्षण किया जायेगा। कुछ प्रकार के रिएक्टरों (विभिन्न क्वथन जल रिएक्टर, दाबित जल रिएक्टर या दाबित भारी पानी रिएक्टर डिज़ाइनों) में संरोधक में हाइड्रोजन सांद्रता का बढ़ना, तंत्र के विभिन्न घटकों की अनुक्रिया पर निर्भर करता है।
इनके आधार पर हाइमेरेस परियोजना में क्वथन जल रिएक्टरों, दाबित जल रिएक्टरों तथा दाबित भारी पानी रिएक्टरों के संरक्षा संबंधी तंत्रों पर अनुसंधान किये जायेंगे। इस परियोजना से प्राप्त जानकारी हाइड्रोजन जोखिम के न्यूनीकरण के लिये भीषण दुर्घटना प्रबंधन उपायों में सुधार के लिये सहायक होगी। इस परियोजना के समझौते के अंतर्गत प्रस्तावित परीक्षणों को स्पष्टत: परिभाषित किया गया है जिसमें NEA की अन्य परियोजनाओं (जैसे SETH व SETH-2) में संस्थान के अनुभव को ध्यान में रखा गया है। हाइमेरेस परियोजना विशेषत: वर्तमान एवं भावी नाभिकीय ऊर्जा संयंत्रों में उच्च संरक्षा संबंधी विषयों पर केंद्रित है।
एईआरबी PANDA व MISTRA परीक्षण सुविधाओं में किये गये विभिन्न प्रयोगों के गणितीय तरल गतिकी (CFD) अनुकरण के माध्यम से इस परियोजना में भाग लेता है।
https://www.oecd-nea.org/jointproj/hymeres.htmlतापीय द्रवचालन, हाइड्रोजन, ऐरोसाल तथा आयोडीन (THAI)
THAI, बेकर टेक्नालाजीज़ जर्मनी द्वारा प्रचालित एक संरोधक परीक्षण सुविधा है। पिछली OECD/NEA THAI परियोजनाओं (THAI व THAI-2 क्रमश: वर्ष 2007-2009 व 2011-2014 में संपन्न) ने दुर्घटना स्थितियों में रिएक्टर संरोधक में हाइड्रोजन व विखंडन उत्पाद संबंधी पहलुओं में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। THAI-3 परियोजना इन दोनों अध्ययनों को आगे बढ़ायेगी। THAI-3 में प्रतिकूल - धारा प्रवाह स्थिति में निष्चेष्ट स्वत: उत्प्रेरक पुनर्संयोजक का कार्य निष्पादन, द्विकक्षीय तंत्र में हाइड्रोजन दहन व ज्वाला प्रसार, उच्च तापमान पर जल कुंड से विखंडन उत्पादों का पुन: आरोहण तथा उच्च ऊर्जा घटना के संघात के कारण विखंडन उत्पाद निक्षेपों का पुन: निलंबन आदि विषयों पर अध्ययन किया जायेगा।
इस परियोजना में भारत की भागीदारी अभी अनुमोदन के चरण में है।
https://www.oecd-nea.org/jointproj/thai3.html
एईआरबी आईएईए की गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेता रहा है। एईआरबी के अधिकारी आईएईए द्वारा ईंधन चक्र गतिविधियों, विकिरण सुविधाओं, रेडियोसक्रिय पदार्थों के परिवहन तथा रेडियोसक्रिय पदार्थों के अवैध व्यापार जैसे विभिन्न विषयों पर आयोजित तकनीकी व परामर्श बैठकों में भाग लेते हैं। एईआरबी, आईएईए समन्वित अनुसंधान कार्यक्रम (IAEA-CRP) तथा आईएईए अंतर्राष्ट्रीय मानक समस्या अभ्यासों (IAEA-ICSP) में भाग लेता रहा है।
एईआरबी IAEA-INES (International Nuclear Event Scale) तथा IAEA-IRS (Incident Reporting System) के लिये राष्ट्रीय समन्वयक है। एईआरबी इनसे संबंधित सभी गतिविधियों में भाग लेता है।
एईआरबी अधिकारी आईएईए प्रलेखों के विकास में भी भाग लेते हैं। जब आईएईए सदस्य देशों से प्रतिपुष्टि या टिप्पणियां मांगता है तो आईएईए प्रलेखों के मसौदों की समीक्षा भी एईआरबी द्वारा की जाती है।
ये परस्पर गतिविधियां एईआरबी की संबंधित क्षेत्रों में नये विकास, संरक्षा मुद्दों तथा संरक्षा मानकों के बारे में नवीनतम जानकारी प्राप्त करने में सहायक होती हैं।